- उग्र राष्ट्रवाद के उदय के कारण
1. अंग्रेजी राज्य के सही स्वरूप की पहचान- भारतीयों द्वारा यह महसूस किया जाना कि ब्रिटिश शासन का स्वरूप शोषणात्मक है तथा वह भारत की आर्थिक प्रगति के स्थान पर उपलब्ध संसाधनों का शोषण करने में लगी हुई है।
2. भारतीयों के आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान में वृद्धि।
3. शिक्षा में विकास का प्रभाव- इसके फलस्वरूप भारतीयों में जागृति आयी तथा बेरोजगारी बढ़ी। बेरोजगारी में वृद्धि के लिये भारतीयों ने अंग्रेजों को उत्तरदायी ठहराया।
4. अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव- तत्कालीन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय घटनाओं ने यूरोपीय अजेयता के मिथक को तोड़ दिया। इन घटनाओं में प्रमुख हैं-
- एक छोटे से देश जापान का आर्थिक महाशक्ति के रूप में अभ्युदय
- इथियोपिआ (अबीसीनिया) की इटली पर विजय
- ब्रिटेन की सेनाओं को गंभीर क्षति पहुंचाने वाला बोअर का युद्ध (1899-1902)
- जापान की रूस पर विजय (1905)
- विश्व के अनेक देशों के राष्ट्रवादी क्रांतिकारी आंदोलन
5. बढ़ते हुये पश्चिमीकरण के विरुद्ध प्रतिक्रिया।
6. उदारवादियों की उपलब्धियों से असंतोष
7. लार्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियां, जैसे- कलकत्ता कार्पोरेशन अधिनियम (1899), कार्यालय गोपनीयता अधिनियम (1904), भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम (1904) एवं बंगाल का विभाजन (1905)।
8. जुझारू राष्ट्रवादी विचारधारा।
9. एक प्रशिक्षित नेतृत्व। - उग्रवादियों के सिद्धांत
- ब्रिटिश शासन से घृणा।- जनसमूह की शक्ति एवं ऊर्जा में विश्वास- स्वराज्य मुख्य लक्ष्य- प्रत्यक्ष राजनीतिक भागीदारी एवं आत्म-त्याग की भावना में विश्वास- भारतीय संस्कृति एवं मूल्यों में विश्वास- भारतीय समारोहों के आयोजन के पक्षधर- प्रेस तथा शिक्षा में विकास के पक्षधर- उग्रवादियों के सिद्धांत
- स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन
बंगाल विभाजन, (जो कि 1903 में सार्वजनिक हुआ तथा 1905 में लागू किया गया) के विरोध में प्रारम्भ हुआ। बंगाल विभाजन के पीछे सरकार की वास्तविक मंशा बंगाल को दुर्बल करना था क्योंकि उस समय बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का प्रमुख केंद्र था। बंगाल विभाजन के लिये सरकार ने तर्क दिया कि बंगाल की विशाल आबादी के कारण प्रशासन का सुचारु रुप से संचालन कठिन हो गया है। यद्यपि कुछ सीमा तक सरकार का यह तर्क सही था किन्तु उसकी वास्तविक मंशा कुछ और ही थी। विभाजन के फलस्वरूप सरकार ने बंगाल को दो भागों में विभक्त कर दिया। पहले भाग में पूर्वी बंगाल तथा असम और दूसरे भाग में शेष बंगाल को रखा गया। - उदारवादियों का बंगाल विभाजन विरोधी अभियान 1903 से 1905
- उदारवादी, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, के.के. मिश्रा एवं पृथ्वीशचन्द्र राय प्रमुख थे। उदारवादियों ने विरोध स्वरूप जो तरीके अपनाये वे थे-जनसभाओं का आयोजन, याचिकायें, संशोधन प्रस्ताव तथा पम्फलेट्स एवं समाचार पत्रों के माध्यम से विरोध।
- बंगाल विभाजन के संबंध में उग्रराष्ट्रवादियों की गतिविधियां
- बंगाल विभाजन के विरोध में सक्रिय भूमिका निभाने वाले प्रमुख उग्रवादी नेता थे- बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्रपाल, लाला लाजपत राय एवं अरविन्द घोष।
- विरोध के तरीके
- विरोध आंदोलन की बागडोर उग्रवादियों द्वारा अपने हाथ में लेने का कारण
- उदारवादियों के नेतृत्व में आन्दोलन का विशेष परिणाम न निकलना।
- उदारवादियों के संवैधानिक तरीकों से उग्रवादी असहमत थे।
- विरोध अभियान को असफल बनाने हेतु सरकार की दमनकारी नीतियां।
- आंदोलन का सामाजिक आधार
छात्र, महिलायें, जमींदारों का एक वर्ग तथा शहरी निम्न वर्ग एवं साधारण वर्ग। शहरों एवं कस्बों के मध्य वर्ग ने पहली बार किसी राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी, जबकि मुसलमान सामान्यतया आंदोलन से पृथक रहे। - बंगाल विभाजन का रद्द होना
- स्वदेशी आंदोलन की असफलता का कारण
- आंदोलन की मुख्य उपलब्धियां
व्यापक सामाजिक प्रभाव’ क्योंकि समाज के अब तक के निष्क्रिय वर्ग ने बड़ी सक्रियता के साथ आंदोलन में भाग लिया, आगे के आंदोलनों को इस आंदोलन ने प्रभावी दिशा एवं उत्साह दिया, सांस्कृतिक समृद्धि में बढ़ोत्तरी, विज्ञान एवं साहित्य को बढ़ावा, भारतीय साहसिक राजनीतिक भागीदारी एवं राजनैतिक एकता की महत्ता से परिचित हुये। भारतीयों के समक्ष उपनिवेशवादी विचारों और संस्थाओं की वास्तविक मंशा उजागर हो गयी। - कांग्रेस का सूरत विभाजन 1907 प्रमुख कारण
उदारवारी
स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को केवल बंगाल तक ही सीमित रखना चाहते थे तथा वे केवल विदेशी कपड़ों और शराब का बहिष्कार किये जाने के पक्षधर थे।
उग्रवादी
स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को न केवल पूरे बंगाल अपितु देश के अन्य भागों में भी चलाये जाने तथा इसमें विदेशी कपड़ों एवं शराब के साथ सभी सरकारी नगर निकायों इत्यादि के बहिष्कार का मुद्दा भी सम्मिलित किये जाने की मांग कर रहे थे। - स्वदेशी आंदोलन के दमन हेतु सरकार द्वारा किए गए प्रयास
- राजद्रोही सभा अधिनियम, 1907
- फौजदारी कानून (संशोधित) अधिनियम, 1908
- भारतीय समाचार पत्र अधिनियम, 1908
- विध्वंसक पदार्थ अधिनियम, 1908
- भारतीय प्रेस अधिनियम, 1910 - क्रांतिकारी आतंकवादउदय के कारण
कंप्यूटर का उद्देश्य Purpose of computer आज के युग में कंप्यूटर का महत्व बहुत ही अधिक बढ़ गया है । जीवन के हर क्षेत्र में आज किसी न किसी रूप में कंप्यूटर का उपयोग हो रहा है । इसी आधार पर कंप्यूटर के उद्देश्य निम्नलिखित है - 1. कंप्यूटर की सहायता से विभिन्न प्रकार के अकाउंट केश बुक , लेजर , बैलेंस शीट , सेल्स रजिस्टर , परचेज बुक तथा बैंक विवरण सहजता व शुद्धता एवं गति के साथ तैयार की जा सकती है । 2. विश्व व्यापार , आयात निर्यात की स्थित ,, भुगतान संतुलन आदि के क्षेत्र में भी कंप्यूटर बड़े उपयोगी साबित हो रहे है। 3. चिकित्सा विज्ञान में कंप्यूटर का प्रयोग औषधि निर्माण से लेकर उपचार तक की संपूर्ण प्रक्रिया में हो रहा है। 4. इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कंप्यूटर की मदद से विभिन्न प्रकार की सरल तथा जटिल मशीनों , छोटे बड़े यंत्रों तथा उपकरणों की उपयोगी मितव्यई तथा सरल डिजाइन सरलता से उपलब्ध हो जाती है , । 5. कंप्यूटर का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य , समाचारों का एक लंबी दूरी तक सुविधापूर्वक संप्रेषण करना है। 6. मौसम विज्ञान कंप्यूटर को विविध कार्यों