भारत की मिट्टियां
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मृदा निर्माण
की प्रक्रिया को मृदाजनन
कहा जाता
है।
- भारतीय कृषि
अनुसंधान परिषद
ने भारत
की मिट्टीयों का विभाजन
8 प्रकारोँ मेँ किया है।
- जलोढ़ मिट्टियां सबसे अधिक
उपजाऊ होती
है। यह देश के
40 % भाग मेँ लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मेँ फैली हैं।
इनमेँ साधारणतः पोटाश, फास्फोरिक अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा मेँ होता ,है लेकिन नाइट्रोजन तथा जैविक
पदार्थों की कमी होती
है।
- प्राचीन जलोढ़
मिट्टी को बांगर तथा नवीन जलोढ़
मिट्टी को खादर कहा जाता है।
- नवीन जलोढ़
मिट्टी, प्राचीन
जलोढ़ मिट्टी
से अधिक
उपजाऊ होती
है।
- लाल तथा पीली मिट्टी
मेँ लोहा,
एलुमिनियम और चूना प्रचुर
मात्रा मेँ पाया जाता
है।
- यह 5.18 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मेँ विस्तृत है। सामान्य आकार
से लेकर
भारी वर्षा
वाली दशाओं
मेँ यह प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों से निर्मित है।
- काली मिट्टी
की उत्पत्ति ज्वालामुखी की दरारोँ मेँ विस्फोट से निकले पैठिक
लावा जम जाने से हुई है। अतः यह दक्कन ट्रेप
से बनी मिट्टी भी कहलाती है। कश्मीर की घाटी फलों
मेवों, केसर
एवं फूलों
लिए प्रसिद्ध है। लवणीय
तथा क्षारीय
मिट्टी को थुर, ऊसर,
कल्चर, राकड़,
रेह और चोपन नामोँ
से भी पुकारा जाता
है।
- देश मेँ बंजर भूमि
का सर्वाधिक क्षेत्र मध्यप्रदेश मेँ है। देश मेँ लवणीय एवं क्षारीय मृदा
का सर्वाधिक क्षेत्र उत्तर
प्रदेश मेँ है। पवन के अपरदन
द्वारा निर्मित
बंजर भूमि
का सर्वाधिक क्षेत्रफल मध्यप्रदेश राज्य मेँ है।
- देश मेँ अवनायित धनक्षेत्र सबसे अधिक
मध्य प्रदेश
राज्य मेँ है।
- भारत मेँ अनेक पहाड़ी
ढालों पर आदिवासियोँ द्वारा
झूम प्राणाली अथवा टोंग्या
खेती के अंतर्गत वनोँ
को काटकर
कृषि योग्य
बनाया जाता
है, इससे
भूमि का तेजी से क्षरण होता
है। अब झूम कृषि
प्रतिबंधित है।