चन्द्रगुप्त द्वितीय (380 ईसवी - 415 ईसवी )
- चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा।
- इसकी माता का
नाम दत्तादेवी था।
- चंद्रगुप्त
ने नाग वंश
की राजकुमारी कुबेरनाग
से विवाह किया
एवं अपनी पुत्री
प्रभावती का विवाह
वातक राजकुमार रूद्रसेन-II
से करवाया।
- शकों पर विजय
प्राप्ति के बाद
उसने विक्रमादित्य की
उपाधि धारण कर
ली। इस विजय
के पश्चात् उसने
उज्जैन को गुप्त
साम्राज्य की दूसरी
राजधानी बना लिया।
- मेहरोली लौह स्तंभ
अभिलेख के अनुसार
उसने बंग एवं
वहिको के महासंघ
को परास्त किया
था।
- इसके शासनकाल के दौरान
405 ईस्वी – 411 ईस्वी
के मध्य फा-हीन ने
भारत भ्रमण किया
था।
- कालिदास,
वराहमिहिर, धनवन्तरी, अमरसिम्हा इसी
के दरबार में
उपस्थित थे।
कुमार गुप्त - प्रथम (415 ईसवी - 455 ईसवी )
- कुमारगुप्त
अपने पिता चंद्रगुप्त-द्वितीय के बाद
सिंहासन पर बैठा
।
- इसने का महेन्द्रादित्य
की उपाधि धारण
की।
- इसने कार्तिक भगवान की
अराधना आंरभ की।
- इसने नालन्दा मठ की
स्थापना की।
- कालिदास,
चंद्रगुप्त द्वितीय एवं कुमारगुप्त-प्रथम दोनों के
शासनकाल के समकक्ष
था।
स्कंदगुप्त (455 ईसवी - 467 ईसवी )
- यह अपने पिता
कुमारगुप्त –प्रथम
के स्थान पर
सिंहासन पर बैठा।
- इसने सुदर्शन झील के
बाँध का जीर्णोद्वार
कार्य करवाया।
- उसके सबसे बड़े
शत्रु हुण थे,
जो मध्य एशिया
में स्थित एक
क्रुर जनजाति थी।
- गाज़ीपुर
जिले (यू.पी.)
में स्थित भितारी
स्तंभ अभिलेख में
स्कंदगुप्त की शक्तियों
का वर्णन किया
गया हैं।
- इसने विक्रमादित्य, देवराज व सकापन
की उपाधियाँ धारण
की।
- 467 ईस्वी
में स्कंदगुप्त की
मृत्यु हो गई
एवं उसके बाद
पुरूगुप्त सिंहासन पर बैठा।
- यद्यपि स्कंदगुप्त की मृत्यु
के 100 वर्षों के बाद
भी गुप्त साम्राज्य
अस्तित्व में रहा
परन्तु समय के
साथ-साथ तीव्र
गति से इसकी
चमक फीकी होती
गई।
- गुप्त साम्राज्य का अंतिम
शासक विष्णुगुप्त था।
गुप्त काल का साहित्य
- गुप्तकाल
संस्कृत साहित्य के विकास
के लिए उल्लेखनीय
रहा।
- कालिदास,
जिसे भारत का
शेक्सपियर कहा जाता
है वह चंद्रगुप्त
द्वितीय के दरबार
में अवस्थित था।
उसने संस्कृत के
कई प्रसिद्ध शास्त्र
लिखे यथा: अभिज्ञान
शकुंतलम, मालविकाग्निमित्रम, कुमारसंभव, रघुवंश, मेघदूत,
ऋतुसंहार, विक्रमोर्वशीयम् आदि।
- संस्कृत साहित्य के विकास
में विशाखदत्त का
भी योगदान रहा
है जिन्होने मुद्रराक्षस
एवं दैवीचंद्रगुप्तम् शास्त्रों
की रचना की।
- मृच्छकटिकम्
शुद्रक द्वारा रचित ग्रंथ
है।
- गुप्तकाल
के दौरान ही
विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र
एवं अमरसिंह ने
अमरकोश की रचना
की।
- गुप्तकाल
के दौरान ही
दो महान महाकाव्य
रामायण एवं महाभारत
लगभग पूर्ण हुए
थे।
- भवभूति ने उत्तरामचरित
एवं मालतीमाधव की
रचना की। गद्य
भाग में दंडी
द्वारा रचित ग्रंथ
दशकुमारचरित एक उल्लेखनीय
कार्य है।
विज्ञान एवंं प्रौध्यौगिकी
- आर्यभट्ट
एक गणितज्ञ एवं
खगोलशास्त्री था। उसने
सूर्य सिद्धांत एवं
आर्यभटीय नामक पुस्तकों
की रचना की।
- उसने π का मूल्य
बताया एवं त्रिकोणमिति
में उल्लेखनीय योगदान
दिया।
- वराहमिहिर
एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री
एवं ज्योतिष था।
उसने पंचसिद्धांतिका एवं
बृहज्जातकम् की रचना
की जो कि
एक विश्वकोषीय कार्य
है।
- ब्रह्मगुप्त
ने ब्रहमसिद्धांत की
रचना की जिसमें
उन्होने गुरूत्वाकर्षण के बारे
में बताया।
- पल्काप्य
ने हस्तायुर्वेद नामक
शास्त्र की रचना
की। पशु विज्ञान
पर आधारित यह
पहली पुस्तक थी।
- एक अन्य पुस्तक
अश्वशास्त्र शालिहोत्र द्वारा उतरार्द्ध
में लिखी गई।
मंदिर निर्माण कार्य
- मंदिरों का व्यवस्था
निर्माण कार्य गुप्तकाल में
प्रारम्भ हुआ। था।
गुप्त साम्राज्य का
आदर्श मंदिर में
देवगढ़ के निकट
झांसी में देवगढ़
के निकट दशावतार
मंदिर है ।
- मंदिरो के निमार्ण
की नागर शैली
गुप्तकाल में ही
विकसित हुई।
धर्म
- गुप्त शासक वैष्णववाद
के समर्थक थे।
- गरूड का चिह्न
गुप्त शासकों का
शाही चिह्न था।
- गुप्तकाल
में अवतारवाद व्यवस्था
प्रारंभ हो चुकीं
थी।
- महाभारत या जयसंहिता,
वेदव्यास द्वारा लिखी गई।
इसमें 18 अध्याय हैं।इनमें से
किसी एक अध्याय
(पर्व)
में भगवान
श्री कृष्ण द्वारा
अर्जुन को उपदेश
देने की घटना
का वर्णन है
जिसे भगवद गीता
कहा गया है।
महाभारत के पूर्ण
होने का कार्य
गुप्तकाल में ही
हुआ था।
- वाल्मीकि
द्वारा रचित रामायण
जिसमें 7 अध्याय है. भी
इसी काल में
पूर्ण हुई थी।
अजंता के गुफा चित्र
- ये महाराष्ट्र के औरंगाबाद
जिले में स्थित
है।
- चित्रकारी
की शैली फ्रेस्को
है।
- 29 गुफाचित्रों
में से वर्तमान
में केवल 6 गुफाचित्र
ही अस्तित्व में
है।
- अधिकतर चित्र बौद्ध धर्म
से सम्बंधित है
यथा-बुद्ध के
जीवन की घटनाएँ,
जातक कथाएँ आदि।
उत्तर - गुप्तकाल
उत्त्र गुप्तकाल मे उत्तर भारत की स्थिती
1. गुप्त
साम्राज्य के पतन से
लेकर हर्ष के उदय
होने तक उत्तर भारत
में चार प्रमुख वंश
अस्तित्व में आए, वे
थे-
- मगध
में वर्तमान समय के गुप्त
शासक।
- मुखारिस,
जिन्होने पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के कन्नौज के
आस-पास के क्षेत्र
को अपने अधिकार में
ले लिया था।
- पश्चिम
में भार्तक के नेतृत्व में
मैत्रक राजवंश। इन्होने सौराष्ट्र में वल्लभी को
अपनी राजधानी बनाकर वहाँ अपना साम्राज्य
स्थापित किया।
- थानेश्वर
का पुष्यभूति वंश।
थानेश्वर का पुष्यभूति वंश
- प्रभाकरवर्धन
ने परमभट्टारक महाराजाधिराज की उपाधि धारण
कर ली।
- इसके
दो पुत्र थे, राज्यवर्धन एवं
हर्षवर्धन। इसकी पुत्री का
नाम राजश्री था जिसका विवाह
ग्रहवर्मन के साथा हुआ।
हर्ष
- राज्यवर्धन
की मृत्यु के बाद उसका
छोटा भाई हर्षवर्धन (जिसे
शिलादित्य भी कहा जाता
था) 606 ईस्वी में 16
वर्ष की आयु
में सिंहासन पर बैठा एवं
उसने 41 वर्षों तक शासन किया।
- बाणभट्ट
ने हर्षचरित्र की रचना की
जिसमें हर्ष एवं कादम्बरी
के जीवन के बारें
में बताया गया है।
- चीनी
दार्शनिक ह्वेन-त्सांग भी इसी काल
में भारत यात्रा पर
आया था।
- ऐहोल
अभिलेख के अनुसार हर्ष
चालुक्य शासक पुलकेशिन-II से
पराजय का सामना करना
पड़ा था।
- हर्ष
ने स्वयं ने तीन कृतियों
की रचना की यथा-नागनंद, रत्नावली एवं प्रियदर्शिका।
- ह्वेन-त्सांग ने हर्ष के
शासनकाल की दो महत्वपूर्ण
घटनाओं का वर्णन किया
है वे है- कन्नौज
एवं प्रयाग की सभाएँ।
- हर्ष
ने 641 ईस्वी में चीन के
सम्राट के पास ह्वेन-त्सांग के साथ अपने
राजदूत भेजे।
- 647 ईस्वी
में हर्ष की मृत्यु
हो गई।