भौगोलिक स्थिति
1- प्रारंभिक वैदिक काल के आर्य पूर्वी अफगानिस्तान उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रान्त, पंजाब एवं पश्चिमी
उत्तर प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्रफल में निवास करते थे।
2- ऋग्वेद के अनुसार वह पूरा क्षेत्र जहां आर्य लोग पहली बार भारतीय उपमहाद्वीप में बसे थे, वह क्षेत्र
सप्तसिंधव या सात नदियों की भूमि कहलाया गया था।
3- ऋग्वेद के नदीसुक्त भजन में उत्तर (गंगा) से पश्चिम (काबुल) क्रमानुसार 21 नदियों का विवरण है।
4- ऋग्वेद में हिमालय, मुजावेंट पर्वत एवं समुद्र के बारे में बारे में भी जिक्र किया गया है।ऋग्वेद में
सरस्वती एवं सिंधु नदी को महासागर में गिरना बताया हे। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को परम पूजनीय नदी बताया गया है।
5- ऋग्वेद में अफगानिस्तान की चार नदियों का वर्णन किया गया है- कुभा, क्रुमु, गोमती एवं सुवास्तु।
6- ऋग्वेद के अनुसार दस राजाओं एवं सुदास (भारत समुदाय का तृत्सु कबीले का राजा) के बीच
पुरूष्णी (रावी) नदी के तट पर हुआ, जिसमें सुदास की विजय हुई
7- ऋग्वेदिक काल में गंगा और यमुना महत्वपूर्ण नदियां नहीं थी
राजनीति
1- प्रारंभिक वैदिक आर्यो की राजनीति मूल रूप से आदिवासी राजनीति थी, जिसका मुखिया कबीले के
सदस्यों में से ही होता था।
2- कबीले को जन कहा जाता था, एवं इसके मुखिया को राजन कहा जाता था।
3- राजन कबीले के बाकी सदस्यों की सहायता से कबीले के मामलों को संभालता था। कबीला दो
सभाओं में विभक्त था यथा सभा एवं समिति।
4- सभा में कबीलें के वरिष्ठ सदस्य होते थे, जबकि समिति का संबंध सामान्य सदस्यों को सम्मिलित करते
हुए नीतिगत निणर्य एवं राजनीतिक व्यापार से था।
5- सभा एवं विधाता की सुनवाई में महिलाओं को भाग लेने का अधिकार था।
6- दिन-प्रतिदिन के प्रशासन कार्य में एक पुरोहित राजा की सहायता करने के लिए नियुक्त किया गया।
वशिष्ठ एवं विश्वामित्र दो प्रमुख पुरोहित थे।
7- राजन को एक स्वैच्छिक भेंट दी जाती थी जिसे बाली कहा जाता था।
8- ऋग्वेदिक राजा राज्य पर शासन न करके केवल एक कबीले पर शासन करते थे।
अर्थव्यवस्था
1- अर्थव्यवस्था एक अर्ध- खानाबदोश अर्थव्यवस्था थी, जो चारागाह भूमि पर आधारित थी।
2- प्रारंमिक वैदिक आर्यो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। तथापि सहायक व्यवसाय के रूप में कृषि कार्य भी किये जाते थे।
3- जौ इनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण फस्ल थी, जिसे यावा कहा जाता था, गेहूं एक सहायक फसल थी।
4- ऋगवेदिक आर्यो का सर्वप्रमुख पशु गाय थी।
5- राजन को गोपा भी कहा जाता था जिसका अर्थ था गायों का रक्षक।
6- संपन्नता की दृष्टि से गाय सर्वप्रमुख पशु मानी जाती थी अत: विनिमय का माध्यम गाय ही थी।
गाय को अघन्य भी कहा जाता था जिसका अर्थ है वध नही करने योग्य।
7- ऋग्वेदिक काल में मुद्रा का प्रचलन नहीं था।
8- ऋग्वैदिक आर्य घोड़ो का बहुतायता मात्रा में उपयोग करते थे जबकि हडप्पा सभ्याता में ऐसा नहीं था।
9- अयास शब्द का कांस्य या तांबे के लिए प्रयुक्त किया जाना इस बात का संकेत है कि यहां धातु कार्य
भी किया जाता था।
धर्म
1- ऋगवेद में इंद्र को सबसे महत्वपूर्ण देवता बताया गया है, जिसे पुरंदर (किले को तोड़ने वाला) कहा गया है।
2- इंद्र एक सेनापति की भूमिका निभाते थे एवं वर्षा के देवता भी माने जाते थे। ऋग्वेद में इंद्र को 250
स्तुति गीत समर्पित है।
3- इंद्र के बाद दुसरा महत्वपूर्ण देव अग्निदेव को माना जाता था। वह अग्नि के देव थे। जिन्हे ऋग्वेद में 200
स्तुति गीत समर्पित थे। ये मनुष्यों एवं देवों के बीच मध्यस्थ का कार्य करते थे।
ऋग्वेदिक देवता
*दिती – दैत्यों की माता
*उषा – उषा की देवी
*सावित्री – प्रकाश की देवी या उद्दीप्त करने वाली
*वरूण – जल देवता, बादल, महासागर, नदियों एवं देवी-देवताओं के नैतिक अध्यक्ष
*अदिती – अनंतकाल या अमरत्व की देवी
*अग्नि – देवों के पुरोहित एवं देवों व मनुष्यों के बीच मध्यस्थ
*मारूत – आंधी-तूफान के भगवान
*सोम – पेड़–पौधों के देव
*इंद्र – दुश्मनों का नाश करने वाला
4- तृतीय सर्वप्रमुख देव वरूण है जिन्हे जल का देवता कहा गया है।
5- सोम को पेड –पौधों का देव कहा गया है एवं एक मादक पेय का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
6- ऋग्वैदिक देवता तीन श्रेणियों में विभाजित किये गये है यथा द्युस्थान (आकाशीय) अंतरिक्षस्थान
(हवाई) एवं पृथ्वीस्थान (स्थलीय)।
7- ऋग्वैदिक आर्य लोग देवों की पूजा अपने आध्यात्मिक उत्थान के लिए या अपनी जीवन की
कठिनाइयों को दुर करने के लिए नहीं करते थे। वे खाद्यान्न, सपन्नता, स्वास्थय आदि के लिए पूजा करते थे।
समाज
1- समाज पितृसत्तात्मक था एवं कुटुम्ब का वरिष्ठतम सदस्य परिवार का मुखिया होता था।
2- ऋग्वैदिक समाज व्यवसाय के अनुसार चार वर्णों में विभक्त था।
3- चारों वर्णों (ब्राहम्ण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र) का जिक्र पहली बार ऋग्वेद के मण्डल X के पुरूषसुक्त में
किया गया था।
4- समाज की सबसे छोटी ईकाई कुटुम्ब (परिवार) थी जो कि मुख्य रूप से एक विवाही या एक पत्नीक
एवं पितृसतात्मक होता था।
5- नियोग्य व्यवस्था के तहत एक संतानहीन विधवा स्त्री अपने मृत पति के छोटे भाई से संतानोत्पति के
लिए विवाह कर सकती थी।
6- बाल विवाह प्रचलन में नही था।
7- संयुक्त परिवार की प्रथा का प्रचलन था।