राजनीतिक परिवर्तन
- छठी शताब्दी ईसवी के बाद से पुर्वी उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोहे के उपयोग के व्यापक प्रसार ने बड़े क्षेत्रीय राज्यों के गठन की परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी।
- अतिरिक्त उत्पादन राजाओं द्वारा अपनी सैनिक व्यवस्था एवं प्रशासन के लिए खर्च किया जाने लगा था।
- स्वामित्व वाले लोग सम्बंधित जनपद या क्षेत्र के प्रति निष्ठा रखने लगे थे न कि जन या अपने कबीलों के प्रति।
- इस समय 16 प्रदेश थे जिन्हे शोदस महाजनपद कहा गया है, जिनका वर्णन सुत्तपिटक के अंगुत्तर निकाय में किया गया है।
- इन 16 महाजनपदों में से चार बहुत शक्तिशाली थे। ये थे- मगध, वत्स, अवन्ति एवं कौशल।
- 6 छठी शताब्दी ई.पू. के उत्तरार्ध में मगध, वत्स, अवन्ति एवं कौशल का प्रशासन क्रमश: बिम्बिसार, उदायन, प्राद्योता महासेन एवं प्रसेनजीत द्वारा संभाला जाता था।
- वज्जि दक्षिण या बिहार के वैशाली में गंगा नदी के किनारे स्थित आठ गणराज्य कबीलों में महासंघ था। इन आठ कबीलों में लिच्छवी सबसे शक्तिशाली कबीला था, चेतक इसका मुखिया था।
हर्यक वंश
- मगध साम्राज्य पर शासन करने वाला पहला वंश हर्यक वंश था।
- इस वंश का संस्थापक बिम्बिसार था। इसकी राजधानी गिरीव्रज या राजगीर थी।
- बिम्बिसार ने मगध राज्य के पूर्व में स्थित अंग पर कब्जा वैवाहिक कर लिया एवं अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए वैवाहिक गठबंधन प्रारंभ कर दिए।
- बिम्बिसार के तीन पत्नियां थी। उसकी पहली पत्नी कौशल के राजा की बेटी एवं राजा प्रसेनजीत की बहन थी।
उनकी दुसरी पत्नी चेल्लना वैशाली की लिच्छवी वंश की राजकुमारी थी जिसने अजात शत्रु को जन्म दिया। इसकी
तीसरी पत्नी पंजाब के माद्रा कुल के मुखिया की पुत्री थी।
उनकी दुसरी पत्नी चेल्लना वैशाली की लिच्छवी वंश की राजकुमारी थी जिसने अजात शत्रु को जन्म दिया। इसकी
तीसरी पत्नी पंजाब के माद्रा कुल के मुखिया की पुत्री थी।
- अजातशत्रु बिम्बिसार का पुत्र था एवं उसने पाटलिपुत्र को अपनी नई राजधानी बनाया।
- उसने कौशल के राजा के साथ एक युद्ध किया एवं युद्ध में उसे पराजित करते हुए उसे आत्मसमर्पण कराते हुए उसकी पुत्री से विवाह का प्रस्ताव दिया।
- उसने लिच्छवी को 16 वर्षों के युद्ध में पराजित किया।
- महावंश के अनुसार अजातशत्रु ने अपनी राजधानी के निकट धातु चैत्य निमार्ण करवाया ।
- प्रथम बौद्ध संगीति अजातशत्रु के संरक्षण में हुई।
- अजातशत्रु के बाद उदायी ने पाटलीपुत्र का शासन संभाला।
शिशुनाग वंश
- शिशुनाग वंश की स्थापना शिशुनाग ने की जो वैशाली पर शासन करता था।
- शिशुनाग की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि उज्जैन के अवंती वंश का विनाश करना था।
- कालाशोक शिशुनाग का पुत्र था जिसने द्वितीय बौद्ध संगीति को संरक्षण दिया।
नंद वंश
- शिशुनाग वंश के बाद नंद वंश ने मगध पर राज किया एवं ये मगध के सबसे शक्तिशाली शासक वंश कहलाये गए।
- महापद्म नंद ने नंद वंश की स्थापना की एवं पाटलिपुत्र से शासन करते हुए उत्तर भारत तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
- धनानंद नंद वंश का अंतिम शासक था। सिकंदर के भारत आक्रमण (327/326) के समय धनानंद यहाँ का का शासक था।
महत्वपूर्ण विदेशी आक्रमणकारी शासक
1. सायरस (पर्सियन वंश का संस्थापक) (ईरानी) 558-530 ई.पू.
2. दारूश (डैरियस) (र्इरान) 522-486 ई.पू.
3. सिकंदर (यूनान) 326 ई.पू.
सिकंदर
- सिंकदर 326 ई.पू. में रवैबर के दर्रे के माध्यम से भारत पहुंचा।
- उसने सिंधु नदी पर औहिंद में अटोक से लगभग 24 कि.मी. ऊपर एक पुल का निर्माण करवाया।
- सर्वप्रथम सिंकदर की भेंट तक्षशिला के राजा अम्बी से हुई।
- उसने पोरस को पराजित किया जो चिनाब एंव झेलम नदी के मध्यक्षेत्र पर शासन कर रहा था।
- वह व्यास नदी तक आया एवं स्वयं की सेना विद्रोह से वापस लौट गया ।
- सिकंदर 324 ई.पू. में सूसा (ईरान) वापस पहुँचा।
- 32 वर्ष की आयु में बेबीलॉन में उसकी मृत्यु हो गई।
मौर्य वंश
मौर्य वंश
मौर्य वंश के स्त्रोत
- पुरालेखीय स्त्रोत, साहित्यिक स्त्रोत विदेशी स्त्रोत एवं पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त स्त्रोंतो द्वारा मौर्य वंश के विषय में ज्ञात होता है।
- कुछ बौद्ध लेख यथा जातक कथाएँ, दिव्यावदान एवं अशोकावदान।
- श्रीलंकाई लेख महावंश एवं दीपवंश भी मौर्य साम्राज्य से जुड़े महत्वपूर्ण लेख है।
- पुराणों में भी मौर्यों की चर्चा की गई है।
- कौटिल्य द्वारा शास्त्रीय संस्कृत में लिखी गई अर्थशास्त्र भी एक महत्पूर्ण स्त्रोत है। यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था अथवा शासन प्रबंध से सम्बंधित पुस्तक है।
- मेगस्थनीज़ द्वारा संकलित इण्डिका भी एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। यह लगभग नष्ट हो चुकी है एवं जिसे विभिन्न युनानी लेखकों की टिप्पणीयों द्वारा पुनर्जीवित किया गया है।
- विशाखदत द्वारा संस्कृत में रचित मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त द्वारा नंद वंश को समाप्त करने के बारे में चर्चा की गई है। विशाखदत उत्तर वैदिक काल के समय का संकलन है।
- सोमवेद की कथासरितसागर, क्षेमेंद्र की वृहद्कथा मंजरी एवं कल्हण की रजतरंगिनी भी मौर्य वंश पर कुछ प्रकाश डालती है।
चंद्रगुप्त मौर्य
- चंद्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य (चाणक्य) की सहायता से मौर्य वंश की स्थापना की।
- उसने साम्राज्य के पूर्वी भाग में सेल्युकस निकेटर को पराजित किया जो सिकंदर को हरा वहां का सम्राट बना था।
- सेल्युकस ने मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था एवं इसने अपनी पुस्तक इंडिका में भारत की तत्कालीन स्थिति का वर्णन किया है।
- युनानी साहित्यों में चंद्रगुप्त को सेन्ड्रोकोट्टस कहा गया है।
- जुनागढ प्रशास्ति के अनुसार चंद्रगुप्त ने सौराष्ट्र में सिचाई कार्य के लिए एक झील का निर्माण करवाया जिसे सुदर्शन झील नाम दिया ।
- जीवन के अंतिम दिनों में उसने जैनधर्म को अपना लिया एक भद्रबाहू के साथ दक्षिण भारत की तरफ चला गया।उसने स्वयं को भूखा रख श्रवनबेलागोला (मैसूर) में प्राण त्याग दिये ।
बिंदुसार (297 - 272 ई.पु.)
- चंद्रगुप्त के पश्चात् उसका पुत्र बिंदुसार गद्दी पर बैठा।
- बिंदुसार को अमित्रघात कहा जाता है अर्थात "दुश्मनों का संहार करने वाला"।
- बिंदुसार ने अपने ज्येष्ठ पुत्र सुमन (सुशिम) को दक्षशिला का राज्यपाल एवं अशोक को उज्जैन का राज्यपाल बनाया।
- उसने दक्षिण भारत के कर्नाटक तक अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया।
- बिंदुसार ने आजीवक सम्प्रदाय की पालना की।
- बिंदुसार की मृत्यु के बाद राजगद्दी के लिए अगले चार वर्षो तक संघर्ष चला एवं अशोक अपने छ: भाईयों का वध कर 272 ई्.पू. में सिहासन पर बैठा।
अशोक (272 -- 232 ई. पु.)
- अशोक की माता का नाम शुभाद्रंगी या जनपद कल्याणी था।
- 260 ई.पू. में अशोक ने कलिंग युद्ध लडा जिसमें बहुत नरसंहार हुआ।
- भारतीय इतिहास में अशोक पहला सम्राट है जिसने अपने संलेखों को पत्थरों पर अंकित करवाया।
- वह कंलिग में हुए नरसंहार से बहुत आहत हुआ एवं इस युद्ध के पश्चात उसने जीत के लिए युद्ध त्याग कर दिया।
- अब उसने शांतिवाद का मार्ग अपनाते हुए एक सच्चे सम्राट की तरह पूरे क्षेत्र पर शासन किया।
- उसने लुम्बिनी का भ्रमण किया, जो बुद्ध का जन्म स्थान था। उसने एक आदेश (फतवा) जारी किया जिसे
रूमिनीदें स्तंभ फतवा कहा जाता है जिसमें लुम्बिनी के लोगों के लिए करों में कमी करने का आदेश था।
लुम्बिनी शाक्यमुनि का जन्म स्थान हैं।
रूमिनीदें स्तंभ फतवा कहा जाता है जिसमें लुम्बिनी के लोगों के लिए करों में कमी करने का आदेश था।
लुम्बिनी शाक्यमुनि का जन्म स्थान हैं।
- अशोक के तीन पत्नियां थी जिनका नाम असंधीमित्र चारूवकी (कौखकी) एवं पद्मावती था।
- उसके चार पुत्र थे जिनका नाम महेंद्र, तिवार, कुनाल एवं जौलक था।
- उसके दो पुत्रियां भी थी जिनका नाम चारूमती एवं संघमित्रा था।
- महेंद्र एवं संघमित्रा ने बौद्ध धर्म को अपनाया एवं बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका का भ्रमण किया। 232 ई.पू. में अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य वंश ज्यादा समय तक नहीं रहा। पूरा साम्राज्य पूर्व एवं पश्चिम दो भागों में
विभाजित हो गया था। पूर्वी भाग अशोक के पौत्र दशरथ द्वारा संचालित किया गया।
विभाजित हो गया था। पूर्वी भाग अशोक के पौत्र दशरथ द्वारा संचालित किया गया।
- पश्चिमी भाग कुनाल द्वारा संचालित किया जा रहा था। वृहद्रथ मौर्य राजाऔं की श्रंखला में अंतिम राजा था। एवं
जिसका वध स्वयं उसके मुख्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा किया गया।
जिसका वध स्वयं उसके मुख्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा किया गया।
अशोक के शिलालेख
- अशोक के शिलालेख भारत, नेपाल, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में पाये जाते है।
- ये लेख उप-महाद्वीप के कुछ भाग में प्राकृत भाषा एवं ब्रहमी लिपी में थे, परन्तु उत्तर पश्चिमी भाग में ये इब्रानी भाषा एवं खरोष्ठी लिपी में थे।
- अशाके के लेखों को चट्टानी शिला लेख (रॉक शिलालेख) एवं स्तंभशिलालेख में वर्गीकृत किया गया है।
- लगभग 400 ई.पू. में पणिनि ने अष्टाध्यायी लिखी जो संस्कृत व्याकरण पर आधारित थी, परन्तु लिपी का सबसे पहले एवं वृहद स्तर पर उपयोग अशोक द्वारा अपने शिलालेखों के लिए किया गया था।
- अशोक नाम केवल माइनर रॉक शिलालेख-I पर से प्राप्त होता है। अन्य शिलालेखों पर उसके दुसरे नाम देवनामप्रिय एवं प्रिर्यदर्शी प्राप्त होते है।
- भाब्रू शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि अशोक को बुद्ध, धम्म एवं संघ में पूर्ण विश्वास था।
- रॉक शिलालेख-VII में उसने कहा है कि सभी सम्प्रदायों की इच्छा आत्मा नियंत्रण एवं मन की पवित्रता हैं।
- रॉक शिलालेख-XII में उसने सभी धर्मों के प्रति अपनी समान भावना की धारण व्यक्त की है।
- मुख्य शिलालेख संख्या में 14 हैं वे साम्राज्य की सीमाओं पर मौजूद है।
- जो शिलालेख विवरणीय है वे हैं कंधार का शिलालेख (एकमात्र द्विभाषी शिलालेख) कलिंग शिलालेख (निजी प्रशासन की नीतियां) कल्सी शिलालेख एवं गिरनार शिलालेख
- रॉक शिलालेख XIII सभी शिलालेखों में सबसे लंबा है।
- अशोक नाम का जिक्र मस्की शिलालेख (माइनर रॉक शिलालेख I) में किया गया है।
- रॉक शिलालेख XIII में कलिंग युद्ध की भयावहता का वर्णन है।
- अशोक के 10 स्तंभ लेख प्राप्त हुए है जिनमें से सात मुख्य स्तंभ लेख है एवं तीन गौण स्तंभ लेख है।
- माइनर स्तंभ लेख I को शिस्म शिलालेख भी कहा जाता है। यह संघ के विभाजन के बारे में बताता है।
- रूमिनिदे स्तंभ शिलालेख बुद्ध के जन्म के बारे में बताता है।
- कौशाम्बी के स्तंभ शिलालेख को जहांगीर द्वारा इलाहाबाद स्थानान्तरित कर दिया गया था।
- सोपारा एवं मेरठ के स्तंभ शिलालेखों को फिरोज तुगलक द्वारा दिल्ली स्थानान्तरित कर दिया गया था। उसने अशोक के शिलालेखों की व्याख्या करने का असंभव प्रयास किया।
- 1837 में जेम्सप्रिंसेप ने अशोक के शिलालेखों की व्याख्या की।
मौर्य अर्थव्यवस्था
- जनसंख्या में सर्वाधिक प्रतिशत कृषकों का था। कृषि को अति महत्व दिया जाता था। जलाशयों एवं बांधों का निमार्ण किया गया एवं कृषि के लिए जल वितरण किया गया।
- उद्योग विभिन्न मंडलीयों का संघो में विभाजित किया गया संघ के मुखिया को ज्येष्ठक कहा जाता था।
- व्यापार राज्य द्वारा विनियमित किया जाता था।
- विदेशी व्यापार समुद्री मार्ग एवं भूमिगत मार्गों द्वारा किया जाता था।
- कौटिल्य के अनुसार पूर्ण कोषागार या भरा हुआ कोषागार राज्य की समृद्धि की गारण्टी थी।
मौर्यकाल में भूमि का वर्गीकरण
1. कृष्ठ - सिंचित भूमि
2. अकृष्ट - असिंचित भूमि
3. विवित - चारागाह भूमि
- राजस्व का मुख्य स्त्रोत भूमि कर था एवं व्यापार कर आदि भी लगाया जाता था।
- ब्राहम्णों बच्चो एवं अक्षय व्यक्तियों पर कर प्रणाली लागू नहीं थी।
- राजा की स्वयं की भूमि से प्राप्त आय को सीता कहा जाता था।
- साहूकारी प्रचलन में थी।
- साहूकारी प्रचलन में थी।
- पण एवं मासिक पंच के चिह्न युक्त क्रमश: चाँदी एवं ताँबे के सिक्के थे।
- काकिनी मासिक का एक चौथाई भाग थी।
मौर्य राजनीति एवं प्रशासन
मौर्य साम्राज्य प्रांतो में विभाजित था यथा
(अ) उत्तर पठ या उत्तर पश्चिमी प्रान्त जिसकी राजधानी तक्षशिला थी।
(ब) अवन्ती जिसकी राजधानी उज्जैन थी।
(स) दक्षिण पठ जिसकी राजधानी स्वर्णगिरि थी।
(द) कलिंग जिसकी राजधानी वैशाली थी।
मौर्य साम्राज्य के प्राधिकारी
1. अमात्य - सवौच्च सैन्य प्राधिकारी, मेगस्थनीज द्वारा मजिस्ट्रेट एवं पार्षद भी कहे जाते थे एवं अशोक द्वारा
महामात्य
महामात्य
2. समर्घ्थ - करों का नियंत्रण
3. सन्निधाता - मुख्य खजानची
4. अक्षपटलाध्यक्ष - महालेखाकार या बहीखाताध्यक्ष संभालने वाला प्राधिकारी महालेखांकार या
5. द्युताध्यक्ष - जुऍ पर नियंत्रण रखने वाला अधिकारी
6. द्वारका - शाही महल का मुख्य अधिकारी
7. युक्त - सचिवीय कार्य एवं लेखा कार्य का अधीनस्थ अधिकारी
8. रज्जुका - भूमि सर्वेक्षण एवं आंकलन के लिए जिम्मेदारी अधिकारी
9. प्रदेशिका - तहसील प्रशासन का अध्यक्ष
10. नगरीका - मुख्य कमांडर
11. जम्हारिक - संदेशवाहक
12. रक्षिणा - पुलिस
13. राष्ट्र –पाल - प्रान्तीय गर्वनर या राज्यपाल
- मुख्य प्रान्तों का नियंत्रण सीधे कुमारी (राजकुमारों) के हाथ में था।
- ग्राम प्रशासन की अंतिम ईकाई थी।
- ग्रामों के मुखिया को ग्रामिक कहा जाता था एवं ग्रामीणों के समूहों की देखभाल गोपा की सहायता से स्थानिक द्वारा की जाती थी।
- मौय साम्राज्य के पास एक विशाल सेना थी एवं नौकरशाही कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत पर आधारित थी।
- प्रशासन कार्यों में राजा की सहायता के लिए मंत्रीपरिषद होती थी।
- पाटलीपुत्र नगर मौर्य नगरपालिका संबंधी कार्यो का प्रेरणास्त्रोत थी। मेगस्थनीज के अनुसार शहर का प्रशासन
30 सदस्यों की एक समिति द्वारा किया जाता था जिन्हे बराबर सदस्यों के पांच भागों में बांटा गया था।
30 सदस्यों की एक समिति द्वारा किया जाता था जिन्हे बराबर सदस्यों के पांच भागों में बांटा गया था।
मौर्य समाज एव संस्कृति
- मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य समाज सात जातियों में विभक्त था। यथा- दार्शनिक, किसान, सैनिक, चरवाह, कारीगर, मजिस्ट्रेट एवं पार्षद।
- मेगस्थनीज ने बताया कि दासता भारत में नहीं थी।
- घरेलू जीवन में संयुक्त परिवार चलन था।विधवा महिलाओं को समाज में एक आदरणीय स्थान प्राप्त था ।
- वर्ण व्यवस्था राजकुमारों की इच्छानुसार कार्यरत थी।
मौर्यो की कला एवं स्थापत्य कला
मौर्य काल की कला एवं स्थापत्य कला के उदारहरण निम्नलिखित हैं
- शाही महल एवं पाटलीपुत्र शहर के अवशेष।
- बाराबार में अशोक स्तंभ एवं राजधानी।
- रॉक कट चैत्य गुफाएं एवं नागार्जुनी पहाडि़यां।
- मौर्यकाल की व्यक्तिगत कलाकृतियां एवं मिट्टी की मूर्मियां।
1. अशोक स्तंभो के शीर्ष पर पशुओं की कला कृतिया चित्रित थी। मुख्य पशु जिनकी कलाकृति अशोक स्तंभ के शीर्ष पर थी वे थे –घोड़े, सांड, हाथी एंव शेर।
2. कुछ यक्ष एवं याक्षियों के आंकडे भी मथूरा, पवाया एवं पटना से प्राप्त हुए है, जिसमें एक महिला को हाथ में कौडी पकड़े हुए दिखाया गया है।
मुख्य पाषण कलाकृतियां
- पत्थर का हाथी – धौली औडिशा)
- यक्षी (कौडी धारक) – दीदारगंज (बिहार)
- यक्ष की मूर्ति – प्रखम (मथुरा)
- चार सिंहो वाला स्तंभ – सारनाथ, साँची
- एक सिंह वाला स्तंभ – लोडिया नन्दनगढ, रामपुर्व-I
- एक सांड वाला स्तंभ - रामपूर्व -II
मुख्य पाषण कलाकृतियां
- पत्थर का हाथी – धौली औडिशा)
- यक्षी (कौडी धारक) – दीदारगंज (बिहार)
- यक्ष की मूर्ति – प्रखम (मथुरा)
- चार सिंहो वाला स्तंभ – सारनाथ, साँची
- एक सिंह वाला स्तंभ – लोडिया नन्दनगढ, रामपुर्व-I
- एक सांड वाला स्तंभ - रामपूर्व -II