उत्पित्ति के कारण
- वैदिक काल के बाद शुद्रों की स्थिति और खराब होती गई। शुद्रों को सिर्फ तीनों उच्च वर्णों की सेवा के
लिए ही माना जाता था एवं महिलाओं को वैदिक शिक्षा से वंचित रखा जाता था।
- शुद्रों को अछुत समझा जाता था।
- पुरोहित वर्गों के वर्चस्व के विरूद्ध क्षत्रियों की प्रक्रिया, नए धर्मों की उत्पत्ति का एक प्रमुख कारण था।
- वर्धमान महावीर और गौतम बुद्ध दोनो ही क्षत्रिय कुल से संबंधित थे एवं दोनो ही ब्राह्मणों के कुल से
विवादित भाव रखते थे।
- वर्णों के इस पदक्रम में तीसरा क्रम वैश्यों का था एवं वे भी किसी ऐसे धर्म की तलाश में थे जो उनकी
स्थिति में सुधार ला सके।
- नए सिद्धांतो ने वेदों के भौतिकवादी धर्म के स्थान पर मोक्ष के विचार को जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाने
पर जोर देना आरंभ कर दिया था। इस कारण सभी संप्रदाय धर्म परिवर्तन की तरफ बढने लगे एवं
लगभग 62 नए विधर्मिक समुदाय उभरकर सामने आए।
- कुछ महव्वपूर्ण समुदाय थे: बौद्ध, जैन, आजीवक एवं चर्वाक।
बौद्ध धर्म
बुद्ध का जीवन
- सिद्धार्थ का जन्म एक शाक्य कुल में 563 ई.पू. कपिलवस्तु (नेपाल) के निकट लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ।
- इनके पिता का नाम शुद्धोधन था। वे शाक्य कुल के मुखिया थे।
- इनकी माता महामाया (मायादेवी) थी, जो कोशालन वंश की राजकुमारी थी। सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही इनकी मृत्यु हो गई।
- शाक्य कुल का होने के कारण इनका नाम शाक्यमुनि पड़ा।
- उनका लालन – पालन उनकी उपमाता गौतमी प्रजापति द्वारा किया गया, अत: इसिलिए उन्हे गौतम भी कहा जाता था।
- एक बार नगर में विचरण करते हुए उन्होने चार निम्न घटनाएँ देखी यथा एक वृद्ध व्यक्ति को, एक बीमार
व्यक्ति को, एक शवावस्था को एवं एक मुनि जिसने उनका मन तपस्या की तरफ अग्रेषित किया।
- 29 वर्ष की आयु में वे अपने घोड़े (कंटक) पर गृहत्याग कर परमसुख की खोज में निकल पड़े।
- वे छ: साल मगध क्षेत्र में विचरण करते रहे एवं इस दौरान उन्होने साधना की। उन्होने योग अलारा
कलमा से सीखा।
- उन्हे 35 वर्ष की आयु में निलंजन नदी के किनारे बोध गया में एक पीपल के पेड के नीचे पूर्ण ज्ञान की
प्राप्ति हुई। अत: शिक्षा प्राप्त होने के पश्चात उन्हे बुद्ध कहा गया है
- उन्होने अपना पहला उपदेश सारनाथ में हिरण उद्यान में अपने पाँच अनुयायियों को दिया। इसे
धर्मचक्र पवतन सुत्त कहा गया।
- वे पाँच अनुयायी थे – असाजी, मोगलन, उपाली, सरिपुत्त्त एवं आनंद।
- अधिकतर उपदेश श्रवस्ति में दिए गए थे।
- बुद्ध के जीवन की चार प्रमुख घटनाएँ थी, महाभिनिष्क्रमण, निर्वाण, चक्र प्रर्वतन एवं महापरिनिर्वाण।
- इनकी मृत्यु 80 वर्ष की आयु में 483 ई.पू. में कुशीनगर में हुई। उनकी मृत्यु सुवर का मांस युक्त विषाक्त
भोजन करने हुई।
- शवदाह के बाद बुद्ध की राख को आठ कबीलों में वितरित कर दिया गया। इस राख को ताबूतों में बंद
करके उनके उपर स्तूप बना दिये गए यथा साँची स्तूप।
- बुद्ध के अंतिम शब्द थे 'सभी समग्र बातों को ध्यान में रखते हुए अपने उद्धार के लिए लगन से प्रयास करे'।
बौद्ध धर्म की शिक्षाऍ
- दु:ख (अर्थात संसार दु:खों से भरा हुआ है।)
- दु:ख समुद्दय (दु:खों का कारण
- दु:ख निरोध (अर्थात यह दु:ख दुर किया जा सकता है।)
- दु:ख निरोध-गामिनी प्रतिपाद (दु:ख की समाप्ति का मार्ग)
1. बुद्ध के अनुसार मानव के सभी दु:खों की जड़ 'इच्छा' है एवं दु:खों को समाप्त करने के लिए इसका
विनाश आवश्यक है।
2. जो कोई व्यक्ति इस पीडित जाल से बाहर निकल जाए, वह अष्टांगिक मार्ग को अपनाते हुए मोक्ष की
प्राप्ति कर सकता है।
ये अष्टांगिक मार्ग है
- सम्यक् वचन
- सम्यक् कर्मान्त
- सम्यक् आजीव
- सम्यक् व्यायाम
- सम्यक् स्मृति
- सम्यक् समाधि
- सम्यक् संकल्प
- समयक् दृष्टि
1. बुद्ध ने पुरी प्रक्रिया का संक्षिप्तीकरण किया यथा सिला (सही आचरण), समाधि (सही ध्यान) एवं प्राज्न (सही ज्ञान)
2. बुद्ध ने मध्यम मार्ग की वकालत की है जो चरम सीमाओं से परे है।
3. उन्होने वर्ण व्यवस्था एवं जातिगत पाबंदीयों की आलोचना की है।
4. आरंभ में, उनहोने 'संघ' में महिलाओं को सम्मिलित नहीं किया परंतु बाद में अपने मुख्य अनुयायी
'आंनद' की सलाह पर राजी हो गए। उनकी उपमाता संघ में जुडने वाली पहली महिला बनी।
5. बुद्ध के अनुयायी दो भागों में विभक्त थे यथा उपासक एवं भिक्षुक।
6. बुद्ध नास्तिक थे एवं भगवान की उपस्थिति को नकारने वाले थे।
7. बौद्ध धर्म के समर्थकों को वर्ण एवं जाति को अनाधार मानते हुए सभी अधिकार समान रूप से प्राप्त थे।
8. बौद्ध धर्म की तीन प्रतिज्ञाएँ थी – यथा – बुद्ध, धम्म एवं संघ
बौद्ध साहित्य
- इसे पाली साहित्य भी कहा जाता है।
- सुत्तपिटक, विनय पिटिक और अभिधम्म पिटिक बौद्ध धर्म के त्रिपिटक के रूप में जाने जाते हैं।
- त्रिपिटक बौद्ध धर्म का प्रमुख पवित्र ग्रंथ है।
- सुत्तपिटक में बुद्ध की शिक्षा एवं उपदेश संकलित है।
- विनयपिटक में संघ एवं भिक्षुकों से संबंधित शासन के नियम संकलित है।
- अभिधम्मपिटक बौद्ध धर्म के दर्शनों से संबंधित है।
- सुत्त पिटक का एक लघु भाग जातक कथाओं से संबंधित है। इसमें बुद्ध के जन्म से संबंधित 550
कहानियों को संकलन है जो लोगों की नैतिक विकास में सहायक है।
- दीपवंश एवं महावंश श्रीलंकाई पुस्तकों के रूप में जानी जाती है। अशोक ने अपने पुत्र एवं पुत्री को
बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु श्रीलंका भेजा था जहाँ इन पुस्तकों का संकलन हुआ।
- मिलिन्दपन्हो भी बौद्ध धर्म से संबंधित एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में ग्रीफ राजा मेनेण्डर
(मिलिंद) एवं नागसेन साधु के मध्य वार्तालाप का विवरण दिया गया है। मिलिंद ने नागसेन साधु के समक्ष
बौद्ध धर्म से सम्बंधित कई प्रश्न रखे।
- बुद्ध चरित अश्वघोष द्वारा लिखी गई संस्कृत भाषा में बुद्ध की जीवनी है।
बौद्ध धर्म की शिक्षाऍ
बौद्ध धर्म के तीन निम्नलिखित सम्प्रदाय है- हीनयान, महायान एवं वज्रयान।
1. हीनयान
यह एक रूढिवादी समूह था। बुद्ध की शिक्षाओं का सख्ती से पालन करना होता था हीनयान व्यक्तिगत
मोक्ष पर ज़ोर देता था। ये लोग चिह्नो द्वारा पूजा किया करते थे। मूर्ति पूजा की आज्ञा नही थी। यह संप्रदाय
मुख्यत: मगध, श्रीलंका एवं बर्मा में प्रसिद्ध था।
2. महायान
यह एक व्यापक दृष्टिकोण वाला संप्रदाय था। यह बुद्ध की शिक्षा की आत्मा का अनुसरण करता था। यह
समुदाय समूह-मोक्ष पर बल देता था। यह समुदाय अर्द्ध –परमात्मा की पहचान पर विश्वास करता था जिसे
बोधिसत्व कहा गया है। ये लोग मूर्ति द्वारा बुद्ध की पूजा करने लगे थे। इन्होने संस्कृत में शास्त्र लिखे
जिन्हे वैपुल्यसुत्र कहा जाता है। कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का समर्थक था।
3. वज्रयान
यह सम्प्रदाय अलौकिंक शक्तियों चमत्कार, तंत्र-मंत्र आदि में विश्वास करने लगा था। यह 10वीं शताब्दी
ईसवी के दौरान पूर्वी भारत में प्रचलित हुआ। पलास वज्रयान संप्रदाय का अनुयायी था।
बौद्ध काल की वास्तुकला
स्तूप - यह एक अर्द्ध- गोलाकार संरचना थी। सर्व महत्वपूर्ण स्तूप सम्राट अशोक ने सांची (उत्तर प्रदेश) में
बनवाया।
चैत्य - ये गुफाओं में बनाये गए बौद्ध मंदिर थे। उदाहरण कार्ले की गुफा (नासिक के पास)
विहार - ये इमारतें साधुओं एवं भिक्षुओं के आवास के लिए बनाई गई थी। पहला विहार कुमारगुप्त द्वारा
नालन्दा में बनाया गया जिसे नालन्दा महावीर कहा गया।
बौद्ध संगीतियाँ
क्रमाकं - वर्ष/स्थान - शासक - अध्यक्ष - महत्व
प्रथम - 483 ई.पू. राजगृह - अजातशत्रु - महाकश्यप - विनयपिटक एवं सुत्तपिटक का संकलन
द्वितीय - 383 ई.पू. वैशाली - कालाशोक - सबाकमी - बौद्ध धर्म के अनुयायी स्थावीरवद एवं महासंघिका
में विभाजित हो गए थे।
तृतीय - 250 ई.पू. अशोक - मोग्लिपुत्त तिस्स - <-> - अभिधम्म पिटक का संकलन
चतुर्थ - 100 ईसवी कुण्डलवन (कश्मीर) - कन्ष्कि - वासुमित्र - बौद्ध धर्म का हीनयान एवं महायान में
विभाजन