कृषी एवं पशुपालन
1. यहाँ के लोग गेहुँ एवं जौ की वृहत पैमाने पर कृषि करते थे। कुछ अन्य फसलें जो इस समय उगाई
जाती थी, वे है – दालें, अनाज, कपास, खजूर, मटर, तरबूज एवं सरसों।
2. चावल की खेती के स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए है। केवल रंगपुर एवं लोथल से चावल के कुछ दाने प्राप्त
हुए हैं, परन्तु संभवत: वह बाद की अवधि के हैं।
3. हडप्पा के लोग अधिकतर किसान थे, अत: यह कहा जा सकता है कि हडप्पा सभ्यता एक कृषि
वाणिज्यिक सभ्यता थी।
4. कालीबंगा एवं बनवाली से हल एवं कुदाल के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
5. हडप्पा सभ्यता के लोग भेड, बकरी, भैंस एवं सुवर पालते थे। वे बाघ, ऊँट, हाथी, कछुआ, हिरण आदि
के बारे में जानते थे, परन्तु वे शेर के बारे में नहीं जानते थे।
6. गैंडा सबसे प्रमुख पशु था, यहाँ के लोग घोड़े के बारे में नहीं जानते थे।
7. हडप्पा के लोग कपास उत्पादन करने वाले पहले लोग होंगे क्योकि यहाँ पर कपास के सर्वप्रथम
उत्पादन के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
8. युनानी इसे सिंदो कहते थे, जो कि सिंद शब्द से प्रेरित है।
शिल्पकला
1. हडप्पा सभ्यता कांस्य युग के अन्तर्गत आती है क्योंकि यहाँ के लोग कांस्य के निर्माण एवं उपभोग से
परिचित थे।
2. यहाँ के लोग चित्र, बर्तन, विभिन्न औजार एवं शस्त्रों का निर्माण करते थे कुल्हाडी, चाकू, आरी, भाले आदि।
3. बुनकर ऊन एवं कपास के कपडे बुनते थे। यहाँ के लोग चमड़े के बारे में भी जानते थे परन्तु यहाँ से
रेशम के कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए।
4. हडप्पा के लोग मोहरें, पत्थर की मूर्तियाँ, टेरा कोटा की मूर्तियाँ आदि बनाते थे।
5. मिट्टी एवं पक्की ईंटो के विशाल ढाँचों को देखकर लगता है कि ईटो के व्यापार का हडप्पाई
अर्थव्यवस्था में महत्वपुर्ण स्थान था।
6. यहाँ के लोग लोहे के बारे में नहीं जानते थे।
7. यहाँ की मुहरों से यह ज्ञात होतो है कि यहाँ के लोगों को नाव बनाना भी आता था।
मुहरें
1. इनका मुख्य कलात्मक कार्य मुहरों का निर्माण करना था।
2. मुहरें सेलखेडी (साबुन – पत्थर) की बनी होती थी एवं यह आकृति में वर्गाकार होती थी।
3. सर्वाधिक वर्णित पशु सांड है। भेड, हाथी, बाघ, गैंडा इनका भी वर्णन मिलता है परन्तु गाय, शेर एवं
घोडे का वर्णन नहीं है।
4. हडप्पा स्थलों से लगभग 200 मुहरे प्राप्त हुई है।
5. स्वर्णकार स्वर्ण, चाँदी एवं मूल्यवान पत्थरों के आभूषण बनाते थे।
6. चुडियाँ बनाने एवं खोल आभूषण का कार्य भी किया जाता था जिसका ज्ञान चन्हुदडो, लोथल एवं
बालाकोट के जाँच – परिणामों से होता है।
व्यापार
1. भूमि व्यापार एवं समुद्री व्यापार प्रचलन में था।
2. लोथल में एक बड़ा पोतगाह (जहाज बनाने का स्थान) मिला है जो कि संभवत: हडप्पा सभ्यता की
सबसे लंबी इमारत है।
3. सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक सम्बंध मेसोपोटामिया के साथ थे। अन्य देश, जिनके साथ व्यापार होता
था। वे थे अफगानिस्तान, पर्शिया, मध्य एशिया एवं भारत के विभिन्न भाग।
4. मेसोपोटामियन शिलालेखों में मेलूहा के साथ व्यापारिक संबधों का वर्णन है जो कि सिंधु क्षेत्र का
प्राचीन नाम माना जाता है।
5. दो मध्यवर्त्ती व्यापारिक केन्द्र यथा दिलमन एवं मकन को क्रमश: बहरीन एवं मकरन तट (पाकिस्तान)
के नाम से जाना गया है।
6. व्यापार की व्यवस्था वस्तु विनिमय प्रणाली थी।
हडप्पा सभ्यता के धर्म
1. मोहन जोदडो से पशुपति की मुहर प्राप्त हुई है, जिस पर योगी का चित्र अंकित है।
2. मुहर पर योगी का चित्र चारों ओर से भैंस, बाघ, हाथी, गैंडा एवं हिरण से घिरा हुआ है। अत: योगी को
आदि – शिव कहा गया है।
3. लिंगोपासना के चिह्न भी प्राप्त हुए है।
4. हडप्पा के लोग माँ देवी की पूजा करते थे। यह हडप्पा से प्राप्त हुई मिट्टी की मूर्ति से ज्ञात होता है।
5. एक विशालकाय इमारत जिसे महान स्नान कहा गया है, मोहन जोदडो से प्राप्त हुई है। यह धार्मिक
स्नान या धार्मिक क्रियाकलापों के लिए काम में लिया जाता है।
6. यहाँ के लोग अंधविश्वासी थे एवं ताबीज पहनते थे।
7. हडप्पा सभ्यता के लोग पीपल के पेड़ की पूजा करते थे।
8. इस सभ्यता से मंदिरो के कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए है।
हडप्पा सभ्यता की लिपी
1. हड़प्पा सभ्यता के लोग लेखन कला को जानते थे।
2. हडप्पा सभ्यता के लेखों के पत्थरों की मुहरों एवं अन्य वस्तुओं पर लगभग 4000 लेख प्राप्त हुए हैं।
3. हडप्पा की लिपि वर्णों (शब्दों) पर आधारित न होकर चित्रों पर आधारित है।
4. अभी तक हडप्पा लिपि पढी नहीं जा सकी है।
5. लिपि में 400 चिह्न है, जिनमें से 75 मूल है एवं शेष उन्ही के प्रकार है।