परिचय
1- वैदिक सभ्यता का प्रतिपादक आर्यो को माना जाता है।
2- वे बातचीत करने के लिए एक भाषा का उपयोग करते थे जिसे जो कुछ कुछ संस्कृत के समान थी अत: इन्हे
आर्यो की संज्ञा दी गई ।
3- मैक्स मूलर के मध्य एशियाई सिद्धांत को आर्यो की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धांतो में से व्यापक रूप से स्वीकार
किया गया है।
4- आर्यो के विषय में जानने के लिए स्त्रोत वैदिक साहित्य है, जिसमें से वेद सबसे प्रमुख स्त्रोत है। वेद का अर्थ है ज्ञान।
5- वेद किसी धर्म विशेष का कार्य नहीं है। कई शताब्दीयों में वैदिक साहित्य के पाठ्य क्रम में वृद्धि हुई है एवं
मुख वचन द्वारा एक पीढ़ी से दुसरी पीढ़ी को सौंपा गया है, इसलिए इन्हे श्रुति कहा गया है।
6- वेदों को अर्पोरूषेय भी कहा गया है जिसका तात्पर्य है कि आदमी ने उनकी रचना नहीं की । एवं नित्य
जिसका अर्थ है कि वे सब शाश्वत है।
वैदिक साहित्य परिचय
1- वैदिक साहित्य में साहित्यिक कृतियों के चार वर्ग है- वेद, ब्राहम्ण, आरण्यक एवं उपनिषद।
2- वेद भजन, प्रार्थना, आकर्षण सूची एवं बलि-विधियों का संग्रहण है। वेद चार प्रकार के है
*वेद के प्रकार
*ऋग्वेद – भजनों का संकलन
*सामदेव – गीतों का संग्रह
*यजुर्वेद – बलि-विधियों का संग्रह
*अथर्ववेद – मंत्र एवं आकर्षण का संग्रह
ऋग्वेद
1- यह 1500-1200 ई.पू. संकलित किया गया था।
2- ऋग का शाब्दिक अर्थ प्रशंसा करना।
3- यह ईश्वर की प्रशंसा करने वाले भजनों का संग्रहण है।
4- यह दस संस्करणों में विभाजित किया गया है जिन्हे मण्डल कहा जाता है।
5- मण्डल II एवं VII सबसे पुराने मण्डल है। इन्हे पारिवारिक पुस्तके कहा जाता है क्योकि यह
ऋषि – मुनियों के परिवारों से सम्बंधित है।
6- मण्डल VII एवं मण्डल IX मध्य काल से सम्बंधित है।
7- मण्डल I एवं मण्डल X सबसे अंत में संकलित किये गए थे।
8- मण्डल X में गायत्री मंत्र का उल्लेख है जिसका संकलन सावित्री देवी की प्रशंसा के लिए किया गया है।
9- मण्डल IX भगवान सोम को समर्पित हे जो पैड़ पौधों के ईश्वर है।
10- मण्डल X में एक भजन का उल्लेख है जिसे पुरूष सुक्त कहा गया है जिसमें वर्ण व्यवस्था का जिक्र किया गया है।
11- जो ऋषि –मुनि ऋग्वेद में निपुण होते थे उन्हे होत्र या होत्री कहा जाता था।
12- ऋग्वेद में बहुत सी बातें अवेस्ता के समान है,जो ईरानी भाषा का प्राचीनतम लेख है।
सामवेद
1- यह भजनों का संग्रहण हे जिसके अधिकतर भजन ऋगवेद से लिए गए है एवं इसमें उनकी धुन
निर्धारित की गई है।
2- यह मंत्रों की पुस्तक है।
3- सामवेद के ज्ञान में निपुण व्यक्तियों को उद्गात्री कहा गया है।
4- सामवेद का संकलन भारतीय संगीत का शुभारंभ माना जाता है।
5- सामवेद में 1810 भजन है।
यजुर्वेद
1- यह बलि की विधियों एवं प्रकारों का संकलन है।
2- इसमें मंत्रोच्चारण करते समय किये जाने वाले अनुष्ठानों का वर्णन है।
3- यजुर्वेद के ज्ञान में निपुण व्यक्तियों को अध्वर्यु कहा जाता था।
4- यह गद्य एवं पद्य दोनों में पाया जाता था।
5- यह दो भागों में विभाजित था यथा कृष्ण यजुर्वेद एवं शुक्ल यजुर्वेद।
अथर्ववेद
1- यह सौदर्य एवं मंत्रों का संकलन है।
2- इसमें विभिन्न रोगों से छुटकारा पाने के लिए जादुई मंत्र थे।
3- भारतीय चिकित्सा विज्ञान जिसे आयुर्वेद कहता है वह अथर्ववेद से ही उत्पन्न हुआ है।
ब्राम्हण
1- ये वे गद्य पुस्तके (पाठ) जिनमें वैदिक कालीन भजनों के अर्थ, उनके अनुप्रयोगो कथाओं एवं उनकी
उत्पत्ति का विवरण है।
2- ऐतरेय या कौशितकी ब्राहम्ण ऋग्वेद, तंड्य एवं जैमिनी ब्राहम्ण सामवेद, तैतिरेय एवं शतपथ ब्राहम्ण
यजुर्वेद एवं गोपथ ब्राहम्ण अथर्ववेद के लिए निर्दिष्ट है।
3- तंड्य ब्राहम्ण सबसे प्राचीनतम ब्राहम्ण लेख है।
4- शतपथ ब्राहम्ण सबसे स्थूल ब्राहम्ण लेख है।
अरण्यक
1- ये ब्राहम्ण लेखों का समापन भाग है।
2- वे अरण्यक इसलिए कहे जाते थे क्योंकि उनकी विषय वस्तु के रहस्यमयीता एवं दार्शनिक चरित्र के
ज्ञान के लिए उनका अध्ययन अरण्य (वनों) के एकांत वातावरण में किया जाना चाहिए।
3- इन्होने भौतिक वादी धर्म की आध्यात्मिक धर्म में परिवर्तन की शुरूआत की। अत: इनसे एक परंपरा
की रचना हुई जो उपनिषद के रूप में समापन हुई।
4- अरण्यक वेदों सहित ब्राह्ण लेखों एवं उपनिषदों के बीच के संयोजक की तरह है।
उपनिषद
1- ये वैदिक साहित्य की अंतिम अवस्था है
2- उपनिषद अध्यात्मविज्ञान अर्थात दर्शन शास्त्र पर आधारित है।
3- इन्हे वेदांत भी कहा जाता है क्योकि वे वैदिक साहित्य श्रंखला की अंतिम पुस्तके थी।
4- इनकी विषय वस्तु आत्मा, ब्राहम्ण, पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धांत आदि थी।
5- उपनिषद ज्ञान के मार्ग पर बल देते है।
6- उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है पैर के पास बैठना
7- छन्दोग्य उपनिषद एवं ब्रहदारण्यक उपनिषद प्रमुख उपनिषद हैं।
8- अन्य मुख्य उपनिषद है- कथा उपनिषद, ईशा उपनिषद, प्रसना उपनिषद, मुण्डकोपनिषद आदि।
9- यम एवं नचिकेता के मध्य वार्ता, कथा उपनिषद की विषय वस्तु है।
10- राष्ट्रीय चिहन् में प्रयुक्त किया गया शब्द सत्यमेव जयते मुण्डको उपनिषद से ही लिया गया है।
वेदांग
1- 600 र्इ.पू. के बाद का समय सुत्र काल कहलाता है। इसी काल में वेदांगो की रचना हूई थी।
अत: इन्हे सुत्र साहित्य भी कहा जाता है।
2- ये वेदों के अंग के रूप में जाने जाते है, अत: इन्हे वेदांग कहा जाता है।
ये संख्या में छ: है, जिनके नाम है
1. शिक्षा – स्वर विज्ञान या उच्चारण विज्ञान
2. कल्प – रस्में एवं समारोह
3. व्याकरण – व्याकरण
4. निरूक्त – शब्द- व्युपत्ति शास्त्र (शब्दों की उत्पत्ति)
5. छन्द – छन्द रूप एवं काव्य रचना के नियम
6. ज्योतिष – भविष्य वाणियाँ
उपवेद
नाम - विषय वस्तु
*गंधर्ववेद – नृत्य, नाटक, संगीत
*आयुर्वेद – औषधि
*शिल्प वेद – कला एवं वास्तु कला
*धनुर्वेद – युद्ध कौशल
प्राचीन कालीन नदीयॉ
श्रगवैदिक नाम – आधुनिक नाम
*सिंधु – इंडस
*वितस्ता – झेलम
*आस्किनी – चिनाव
*पुरूष्णी – रावी
*विपाशा – व्यास
*शतुद्रि – सतलज
*द्रशद्वर्ती – घग्घर
*क्रुमु – कुर्रम
*गोमल – गोमती